सौरभ दुबे// पिछले कुछ साल में रेकी का प्रचार-प्रसार काफी बढ़ा है, सामान्यत: लोग रेकी के नाम से अच्छी तरह परिचित हैं और इसे चिकित्सा पद्धति मानते हैं जिसे पश्चिमी देशों अथवा जापान से जोड़कर देखा जाता है मगर इसके बारे में जितनी भी जानकारी उपलब्ध है उसमें बहुत सारे जापानी एवं अन्य भाषाओं के शब्द मिश्रित मिलते हैं, यही कारण है कि रेकी के वास्तविक स्वरूप को पहचानना थोड़ा मुश्किल हो जाता है ऐसे में रेकी पर आधा अधूरा ज्ञान ही मिल पाता है । इस लेख में रेकी की जानकारी सरलतम तरीके से प्रस्तुत किया गया है ।
रेकी के प्रकार
प्रमुख रूप से रेकी 2 प्रकार की बताई जाती है पहली परंपरागत जापानी रेकी और दूसरी पश्चिमी रेकी । लेकिन दोनों ही रेकी के जन्मदाता श्रीमान उसुई जी है । दरअसल, उसुई जापान से बाहर रेकी का प्रचार नहीं कर सके किंतु पश्चिमी विद्दानों ने जापान जाकर रेकी पर रिसर्च शुरू किया । उन्होंने आधे अधूरे ज्ञान से अभ्यास करके इस विघा को विकसित करने की कोशिश की । इसके बाद ही वो लोग भी सामने आ गए, जो गुपचुप तरीके सेरेकी के अभ्यास में संलग्न थे एवं उन्होंने भी अपना प्रचार प्रसार शुरू कर दिया । इन सबके बावजूद, यह समाज आज भी लोगों की पहुंच से दूर है । माना ये भी जाता है कि पश्चिमी रेकी का विकास तकाता ने किया था। इस प्रणाली में भी स्तर मौजूद हैं, जैसे पहली डिग्री, दूसरी डिग्री और मास्टर। रेकी के उत्तराधिकार को लेकर विवाद हैं हर कोई स्कूल इसे अपनी बपौती समझता है । शंबाला रेकी, तेरा माई रेकी और तिब्बती-तांत्रिक आदि इसके बहुत सारे नाम हो चुके हैं ।
रेकी के फायदे और कैसे सीखें रेकी ?
रेकी विभिन्न रोगों के उपचार में कारगर बताई जाती है, एसिडिटी, पथरी, मधुमेह, अनिद्रा, मोटापा, गुर्दे के रोग, आंखों के रोग, स्त्री रोग और पागलपन तक दूर करने मे समर्थ है । इनके अलावा यह रिश्तों में आई दूरी को भी कम करता है लेकिन रेकी के जनक उसुई के पास जितनी अलौकिक शक्ति थी, उतनी अन्य किसी रेकी मास्टर के पास नहीं । यही कारण है कि रेकी को वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है । माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति रेकी सीखना चाहता है तो उसे किसी रेकी मास्टर से शिक्षा लेनी होगी और उसका अभ्यास करना होगा । रेकी में किसी तरह की किसी दवा का सेवन नहीं करना पड़ता, यह ऊर्जा चिकित्सा का एक रूप है । साथ ही, इससे किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं होता । रेकी आत्मविश्वास बढ़ाती है, जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भरकर सुखमय बनाती है । रेकी कोई भी सीख सकता है इसके लिए ध्यान और सरलता की आवश्यकता है । योग के दौरान कुंडलिनी जागरण के प्रयास में हम जिन चक्रों को जागृत करने का प्रयास करते हैं, रेकी में उन चक्रों को सिर्फ गतिमान किया जाता है । ऐसा रेकी मास्टर कहते हैं । चक्रों का गतिमान होना ध्यान की प्राथमिक अवस्था है । सबसे पहले रेकी प्रशिक्षु को मन ही मन प्रार्थना करनी होती है । रेकी मास्टर्स के अनुसार प्रार्थना में बड़ी शक्ति होती है । वो निम्न प्रार्थना कराते हैं...
"प्रभु मेरा मार्ग दर्शन करें, मुझे शक्ति प्रदान करें ताकि मैं रोगियों के काम आ सकूं। मैं सबके स्वास्थ्य की इच्छाकरता हूँ । मुझे आशीर्वाद दो, मेरा लक्ष्य मानव मात्र की सेवा करना है, मैं यह काम तभी कर पाऊंगा जब आप मुझ पर कृपा करेंगे । मैं वचन देता हूँ कि आपकी शक्ति का दुरूपयोग नहीं होने दूंगा."
हालांकि अभी तक वैज्ञानिक कसौटी पर रेकी खरी नहीं उतरी है लेकिन बहुत सारे ऐसे रोगी हैं जिनका कहना है कि उन्हें रेकी से बहुत फायदा हुआ है । इसी कारण रेकी अभी तक पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल की जा रही है साथ ही, रेकी मास्टर्स ने इस चिकित्सा में मंत्र एवं प्रतीकों का प्रयोग शुरू कर दिया है ताकि रेकी को अधिक से अधिक प्रभावी बनाया जा सके । बीमारी की गंभीरता के अनुसार उपचार की अवधि निर्धारित की जाती है लेकिन बिना किसी मास्टर इसे सीखना आसान नहीं ।
रेकी की खोज की कहानी
रेकी की खोज करने वाले मिकाओ उसुई जापान में प्रोफेसर हुआ करते थे, जब वो बाइबिल में लिखे हुए इसा मसीह के चमत्कारों का वर्णन क्लास में कर रहे थे, तब किसी छात्र ने कहा कि क्या आप इसा मसीह की तरह स्पर्श करके लोगों की बीमारियां ठीक कर सकते हैं ? इस बात से उसुई बहुत सोच में पड़ गये और नौकरी छोड़कर अलौकिक शक्ति पाने के प्रयास शुरू किए। उसुई ने विभिन्न भाषाएं सीखी और अलग-अलग भाषाओं के धर्म ग्रंथ पढ़े । बौद्ध धर्म को नजदीक से जाना एवं विभिन्न देशों में जाकर जानकारियां जुटाई लेकिन उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई तब आखिर में उसुई को महसूस होने लगा था कि अलौकिक शक्तियां सिर्फ हिन्दू धर्म की योग-ध्यान पद्धति से ही प्राप्त की जा सकती हैं और इसी कारण उन्होंने फैसला लिया कि वो हिन्दू योग-ध्यान पद्धति का अनुसरण करते हुए पर्वत पर जाकर तप करेंगे एवं जब तक ईश्वर से कुछ प्राप्त नहीं होगा तब तक वापस नहीं लौटेंगे, भले ही प्राण क्यों ना चले जाएं । आखिरकार उसुई ने पर्वत पर साधना आरंभ की और करीब 21 दिन बाद उन्हें दिव्य शक्ति प्राप्त हो गई । जिसे रेकी का नाम दिया गया । पर्वत से नीचे उतरकर उसुई को एक बीमार लड़की मिली, जिसके गले में दर्द-सूजन थी । उसुई ने उसके माता-पिता से इजाजत लेकर उसके गले पर हाथ रखा तो दर्द गायब हो गया और सूजन भी ठीक हो गई । जिसके बाद उसुई प्रचारित हो गए और वो मरीजों को निशुल्क ठीक करने लगे । साल 1922 में उसुई टोक्यो चले गए और वहां उन्होंने उसुई रेकी उपचार समाज की स्थापना की ।
रेकी का प्रचार-प्रसार एवं विकास
उसुई ने रेकी के सिद्धांत लोगों को बताए, उन्होंने हथेली से उपचार की विधि को टेनोहिरा कहना शुरू कर दिया । ( रे ) को ऊर्जा मान लिया गया और ( की ) को ऊर्जा प्राप्त करने की चाबी । रेकी के सिद्धांत के अनुसार माना जाता है कि ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का अथाह भंडार है, यही ऊर्जा रेकी मास्टर के जरिए मरीज को दी जाती है । इस प्रक्रिया में रेकी मास्टर सिर्फ माध्यम होता है, जो स्वस्थ्य मनुष्य को भी सौभाग्य के लिए रेकी दे सकता है ।रेकी किसी भी बीमारी के लिए दी जा सकती है किंतु यह आज के दौर में पूरक चिकित्सा के तौर पर उपलब्ध है क्योंकि मौजूदा दौर में उसुई जैसे रेकी मास्टर नहीं । उसुई का देहावसान सन् 1926 में हुआ। इसके बाद उसुई के शिष्यों ने दूसरे लोगों को रेकी का प्रशिक्षण देना शुरू किया । उसुई के शिष्य हयाशी ने एक अलग संगठन बनाया और रेकी को सरल बनाने पर जोर दिया लेकिन बदलते वक्त ने रेकी को पेशा बना दिया । हयाशी के शिष्य तकाता ने संयुक्त राज्य अमेरिका में रेकी का भरपूर प्रचार-प्रसार किया लेकिन उसने इसके लिए 10 हजार तक का शुल्क लेने पर जोर दिया । तकाता का निधन 1980 में हुआ । उसने भी बहुत सारे रेकी मास्टर्स को ट्रेनिंग दी ।अब विभिन्न देशों में बहुत सारे रेकी मास्टर्स प्रशिक्षित हो चुके हैं लेकिन इस बात की गारंटी नहीं ली जा सकती है कि उनकी रेकी प्रणाली उसुई जितनी कारगर है ।
रेकी का जन्मदाता ध्यानयोग
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